जब अटल सरकार ने दो राज्यों के कलेक्टर्स को दी थी हिंदू शरणार्थियों को नागरिकता देने की स्पेशल पॉवर

वर्ष 2003 में जब केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी, उस समय उन्होंने देश के दो राज्यों के जिलाधिकारियों को पाकिस्तान से आए हिंदू शरणार्थियों के लिए भारतीय नागरिकता तय करने के लिए एक साल के लिए स्पेशल पॉवर्स दी थी.

अटल बिहारी वाजपेयी ने ये अधिकार जिन दो राज्यों के जिलाधिकारियों को दिए थे, वो गुजरात और राजस्थान थे, जहां बड़े पैमाने पर पाकिस्तान से आए हिंदू शरणार्थियों को शरण मिली थी. ये वो शरणार्थी थे जो 1965 और 1971 के युद्ध के बाद पाकिस्तान में पैदा हुई स्थितियों के मद्देनजर भारत आ गए थे.

पहली बार ऐसा हुआ था
ये संख्या में बहुत ज्यादा थे. जब इन शरणार्थियों ने भारत में नागरिकता की मांग की तो इसे तय करने का काम खासतौर पर इन दो राज्यों के जिलाधिकारियों को दिया गया. देश में ऐसा पहली बार हुआ था जब किसी दो राज्य के जिलाधिकारियों को इस अधिकार से लैस किया गया था.


क्यों किया गया ऐसा इस पॉवर को देने की वजह भी यही थी कि बड़े पैमाने पर भारत आए इन शरणार्थियों की वैधानिक स्थिति साफ करनी थी. एक अनुमान के अनुसार 1965 और 1971 के युद्ध के बाद करीब दो लाख हिंदू और सिख शरणार्थी भारत आए, उसमें ज्यादातर इन दो राज्यों में आए.


फिर मनमोहन सरकार ने भी इसे आगे बढ़ाया


2004 में जब अटल सरकार चुनाव हार गई तो सत्ता में मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार आई. इसने भी जिलाधिकारियों को मिले इस अधिकार को तीन साल के लिए आगे बढ़ाया लेकिन फिर खत्म कर दिया.
अब केंद्र सरकार द्वारा नागरिकता संशोधन कानून लाए जाने के बाद फिर गुजरात और राजस्थान में पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए शरणार्थियों के संगठन मांग कर रहे हैं कि जिलाधिकारियों को इसी तरह के अधिकार दोबारा दे दिए जाएं.