बाल ठाकरे: भारतीय राजनीति का इकलौता नेता जिसने कश्मीरी पंडितों की मदद की

महाराष्ट्र की राजनीति में 'बाला साहेब' के उपनाम से मशहूर बाल ठाकरे की आज जन्मतिथि (Bal Thackeray Birth Anniversary) है. बाल ठाकरे के बेटे उद्धव ठाकरे इस समय महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री हैं. खुद बाला साहेब कभी किसी राजनीतिक पद पर नहीं रहे, लेकिन लोगों की मदद वो हमेशा करते रहे. हाल ही में एक टीवी कार्यक्रम के दौरान पत्रकार राहुल पंडिता ने बताया था कि बाला साहेब इकलौते नेता थे जिन्होंने 1990 में कश्मीरी पंडितों की मदद की थी.

दरअसल, 19 जनवरी 1990 को कश्मीरी पंडितों पर अत्याचारों की इंतेहा हुई. पूरे समुदाय को घाटी छोड़ने पर विवश होना पड़ा. कई लाख लोग एक साथ सड़कों पर आ गए थे. लोग कैंपों में रहने को मजबूर थे. कश्मीरी पंडितों को ये भरोसा था कि उन पर हुए अत्याचार के खिलाफ भारतीय राजनीतिक पार्टियां मजबूत स्टैंड लेंगी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. चारों तरफ से विवश जब समुदाय के लोगों को कुछ सूझ नहीं रहा था तो समुदाय के कुछ प्रतिनिधि बाला साहेब से मिलने पहुंचे. बाला साहेब ने इन प्रतिनिधियों से पूछा कि उन्हें किस तरह की मदद चाहिए? प्रतिनिधि समझते थे कि आर्थिक मदद तो कुछ समय में समाप्त हो जाएगी.

प्रतिनिधियों ने बाला साहेब से कहा कि अगर संभव हो सके, तो महाराष्ट्र के संस्थानों में कश्मीरी पंडितों के लिए कुछ प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था करवा दें. इससे उनके बच्चों को अपना भविष्य बनाने में मदद मिलेगी. बाला साहेब ने इसे तुरंत स्वीकार किया और कश्मीरी पंडितों को दिया वादा पूरा किया. खुद पत्रकार राहुल पंडिता ने एक इंटरव्यू के दौरान स्वीकार किया कि बालासाहेब द्वारा की गई इस मदद की वजह कश्मीरी पंडितों की अगली पीढ़ी को पढ़ाई-लिखाई और करियर बनाने में काफी हद तक मदद मिली.


सरकार किसी की भी रहे, चलती तो बाल ठाकरे की ही थी
लंबे समय तक महाराष्ट्र की राजनीति में दखल रखने वाले बाला साहेब के रुतबे की तूती बोलती थी. एक दौर ऐसा भी आया जब ठाकरे के बारे में ये कहा जाने लगा कि सरकार किसी की रहे मुंबई में वहीं होता है जो बाल ठाकरे चाहते हैं. एक हद तक यह बात सही भी थी. एक समय में उनके इशारे पर शिव सैनिक किसी भी घटना को अंजाम देने में नहीं सोचते थे. उनकी पार्टी सरकार या सत्ता में रहे या न रहे ये बाल ठाकरे के जलवे का ही नतीजा था कि बड़े-बड़े लोग उनके यहां हाजिरी लगाने जाया करते थे. बाला साहेब ठाकरे ने अपने पूरे जीवन में जो किया वो डंके की चोट पर किया. चाहे वो विरोध रहा हो या समर्थन.

राजकीय सम्मान के साथ हुई विदाईप्रधानमंत्री, राष्ट्रपति या ऊंचे संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों के ही निधन पर 21 तोपों की सलामी दी जाती है. लेकिन आप सोचिए कि एक इंसान जो कभी सांसद भी न रहा हो, उसके लिए ये किया जाए तो उसके रुतबे का अंदाजा लगा सकते हैं. एक कार्टूनिस्ट से शुरू हुआ सफर शिव सेना प्रमुख बनने तक रहा. अपने पूरे जीवन में विरोध की राजनीति करने वाले बाल ठाकरे ने 1966 में शिव सेना की स्थापना की. वहां से शुरू हुआ सफर और पार्टी को राज्य में सत्ता तक पहुंचाया. पार्टी बनने के बाद से ही उन्होंने किसी-न-किसी एक समुदाय या किसी खास जगह के रहने वाले लोगों के प्रति अपने विरोध का तरीका अपनाया. शुरुआत दक्षिण भारतीय लोगों से हुई और यह आखिर में मुसलमानों तक पहुंचा. उनको और उनकी पार्टी को इसका फायदा भी मिला.